नई दिल्ली । अन्ना आंदोलन से निकले अरविंद केजरीवाल ने 2 अक्टूबर 2012 को आम आदमी पार्टी बनाई थी। 2013 के अंत में उन्होंने दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ा। पहली ही बार में 28 विधानसभा की सीटें जीतकर कांग्रेस और भाजपा को ठिकाने लगा दिया था। पहले सरकार 49 दिन की रही। कांग्रेस के समर्थन से बनी थी। उसके बाद 2015 का चुनाव दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से उन्होंने 67 सीटों के भारी बहुमत से जीती। 2020 का चुनाव 62 सीटों के साथ जीता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के होते हुए दिल्ली की जीत ने केजरीवाल को राष्ट्रीय स्तर का नेता बना दिया था। उसके बाद से आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय पार्टी बनकर सारे देश में धूम-धड़ाका कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दे रहे थे।
2020 के बाद से भाजपा ने आम आदमी पार्टी को नेस्त नाबूत करने के लिए हर संभव प्रयास शुरू कर दिए थे। भारतीय जनता पार्टी को इसमें सफलता मिली। एक्साइज घोटाले में मुख्यमंत्री रहते हुए अरविंद केजरीवाल को जेल जाना पड़ा। केंद्र सरकार ने सत्येंद्र जैन, उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया सहित लगभग एक दर्जन से ज्यादा विधायकों और मंत्रियों को जेल भेजा। दिल्ली सरकार के पर कतरने के लिए अध्यादेश लाये। मुख्यमंत्री के ऊपर एलजी को बैठा दिया। केजरीवाल की इमेज भ्रष्टाचारी और झूठे नेता के रूप में बना दी। पिछले कई वर्षों से कोई काम नहीं करने दिया। केंद्र और राज्य सरकार के झगड़े में मतदाताओं ने भी केजरीवाल का साथ छोड़ दिया। जिसके कारण दिल्ली के इस चुनाव में करारी पराजय अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को झेलना पडी।
 चुनाव के पहले ही आम आदमी पार्टी के 7 विधायक भारतीय जनता पार्टी में चले गए थे। इस पराजय के बाद आम आदमी पार्टी में भगदड़ मचना तय है।अरविंद केजरीवाल ने अपने 11 साल के राजनीतिक जीवन में दुश्मनों की बहुत बड़ी लाइन खड़ी कर ली है। जिसके कारण आम आदमी पार्टी का अस्तित्व बना रहेगा,या नहीं। यह उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
निश्चित रूप से केंद्र सरकार ने पिछले 5 वर्षों में आम आदमी पार्टी को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए जो राजनीतिक एवं प्रशासनिक प्रयास किए हैं। केंद्र सरकार अरविंद केजरीवाल के पिछले 10 सालों के कामकाज की जांच कराकर और आने वाले कुछ ही महीनो में पंजाब सरकार को ठिकाने लगाकर,आम आदमी पार्टी को  तगड़ी चुनौती देने की तैयारी कर रही है। ऐसी स्थिति में अब आम आदमी पार्टी के अस्तित्व और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी में पकड़ बनी रहेगी या नहीं। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट रखने की है। जितनी तेजी के साथ आम आदमी पार्टी ने देश के कई राज्यों में अपनी पहचान बनाई थी। एक ही झटके में आम आदमी पार्टी का अस्तित्व खत्म होते नजर आ रहा है।ऐसी स्थिति में आम आदमी पार्टी यदि बनी रह जाए। यह बहुत बड़ी बात होगी।